केंद्र की स्थापना का इतिहास : नागपुर में अशोक विजयदशमी के दिन 14 अक्टूबर, 1956 को बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी. उसी ऐतिहासिक स्थल से मात्र 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वर्धा. जहाँ वर्धा की राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा 14 अप्रैल, 2004 को बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की जयंती के दौरान कार्यक्रम के अध्यक्ष व महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन द्वारा भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के अगाध हिंदी-प्रेम एवं हिंदी के प्रति उनकी संवैधानिक प्रतिबद्धता को देखकर और भारत में बौद्ध धम्म एवं दर्शन को पुनर्जीवित करने के, उनके कार्य को सुदृढ़ आधार प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय में ‘डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र’ की आधारशिला रखी गई। इसका प्रस्ताव महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा और राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा अगले वर्ष 2005 में डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन की जन्मशताब्दी समारोह 29-30 मार्च, 2005 को मनाते हुए, एक प्रस्ताव पारित किया कि वर्धा में उनके नाम से एक बौद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित किया जाए. इस केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव को महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की नई दिल्ली में आयोजित चौथी विद्या परिषद ने तत्कालीन कुलपति प्रो.जी.गोपीनाथन की अध्यक्षता में 14 जुलाई, 2005 को पास किया. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली की इपोक मेकिंग सोशल थिंकर्स योजना के अंतर्गत 11वीं पंचवर्षीय योजना में अनुदान की स्वीकृति मिली। 05 अक्टूबर, 2008 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोरात ने वर्धा आकर केंद्र के प्रथम पाठ्यक्रम बौद्ध अध्ययन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की कक्षायें विधिवत आरंभ करने का उद्घाटन किया।
इस वर्ष मार्च 2015 में विश्वविद्यालय को नैक ने ए ग्रेड दिया है. जिस प्रकार वर्धा से महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है, उसी प्रकार वर्धा की राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एवं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन का नाम जुड़ा है। वे सन् 1942 से सन् 1951 तक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधानमंत्री रहे। हिंदी और बौद्ध धम्म व दर्शन के क्षेत्र में भदन्त जी का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, उन्होंने पालि भाषा के त्रिपिटक व अट्ठकथाओं समेत कई प्रमुख बौद्ध ग्रंथों का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया। उनके इस विशेष योगदान को देखते हुये ही, इस केंद्र का नाम ‘डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र’ रखा गया।
आज जिस प्रकार पूरे विश्व में युद्ध, हिंसा, अराजकता, नफरत और असहिष्णुता का माहौल व्याप्त है, ऐसे में बौद्ध-धम्म-दर्शन की मैत्री, करुणा, शील एवं समस्त प्राणियों के प्रति व्यापक कल्याण की भावना का प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-अध्यापन और शोध, संपूर्ण प्राणी जगत के लिए बेहद जरूरी एवं उपयोगी है। बौद्ध दर्शन मनुष्यता एवं समाज के लिए उच्च मानवीय मूल्यों, सदाचार व नैतिकता एवं विश्व-बंधुत्व की भावना को स्थापित करता है। यह अध्ययन केंद्र इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कृत संकल्प है। बौद्ध धम्म एवं दर्शन से संबंधित अनेक दुर्लभ ग्रंथ, लेख, शिलालेख एवं अभिलेख ब्रह्मी लिपि, पालि भाषा, संस्कृत, बौद्ध संकर संस्कृत, चीनी भाषा, तिब्बती आदि भाषाओं में संकलित हैं। जिन पर अभी भी गम्भीर शोध किये जाने की आवश्यकता है। आज भी इनका हिंदी भाषा में अनुवाद, बौद्ध अध्ययन की अकादमिक तथा सामाजिक उपयोगिता के लिए बहुत जरूरी है, केन्द्र इस दिशा में गंभीर प्रयास करेगा। श्रीलंका के केलानिया विश्वविद्यालय का सहयोग लेते हुये दोनों विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों, शोधार्थियों व अध्यापकों को सुविधा प्रदान करते हुये एक दूसरे के यहॉ अध्ययन-अध्यापन के लिए आमंत्रित करेंगे।
आज यह केंद्र विदर्भ के पुरात्तव बौद्ध स्थलों के ऊपर शोध कराये गये हैं, साथ ही मिलने वाले नए स्थलों पर भी शोध करा रहा है और कई स्थानों पर चल रहे खुदाई के कार्यों पर प्रगति रिपोर्ट तैयार करवा रहा है. विदर्भ में किसान आत्महत्या देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है, हजारों किसानों आज भी अपनी जान देते रहते हैं. लेकिन सरकार और विद्वान इस समस्या पर सही तरीके से आज भी हल नहीं निकाल पायें हैं. यह केंद्र विदर्भ के किसानों की आत्महत्या पर बौद्ध दृष्टिकोण से शोध करा रहा है. बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बौद्ध धम्म ग्रहण करने के बाद भारत में दलितों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है ? इस विषय पर भी हर वर्ष परियोजना शोध कार्य केंद्र कराता रहता है. आज दुनिया में पर्यावरण संरक्षण और आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है, इस विषय को केंद्र अपने पाठ्यक्रम में शामिल किये हुये है. आज इस केंद्र में बौद्ध अध्ययन और पालि भाषा को पढ़ने व सीखने के लिए उ.प्र., बिहार, झारखंड, म.प्र., छत्तीसगढ़, राजस्थान, उड़ीसा और महाराष्ट्र आदि राज्यों से विद्यार्थी देश भर से आते हैं. यह केंद्र की पिछले 06 वर्षों की सफलता का प्रतीक है।
केन्द्र द्वारा संचालित पाठ्यक्रम:
1. एम.ए. बौद्ध अध्ययन: हिंदी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध अध्ययन को विस्तार देने की दृष्टि से एम.ए. बौद्ध अध्ययन में दो वर्षीय पाठ्यक्रम सत्र 2009-2010 से चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 18 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ चार सेमिस्टर में पूरा होता है। साथ ही किसी एक भारतीय अथवा विदेशी भाषा में सर्टिफिकेट/डिप्लोमा करना और आज के तकनीकी युग को दृष्टिगत रखते हुए कंप्यूटर का अध्ययन भी अनिवार्य है।
2. पी-एच.डी. बौद्ध अध्ययन: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (एम.फिल./पी-एच.डी.) उपाधि के लिए न्यूनतम मानक एवं प्रक्रिया विनियम, 2009 के अनुसार यह पाठ्यक्रम संचालित है। इसमें प्रवेश के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से न्यूनतम 55% अंको सहित बौद्ध अध्ययन/पालि में स्नातकोत्तर उपाधि उत्तीर्ण (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अभ्यर्थियों हेतु न्यूनतम 50% अंको सहित उत्तीर्ण) वांछनीय: बौद्ध अध्ययन/पालि में एम.फिल./जे.आर.एफ./नेट/समकक्ष राष्ट्रीय परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाएगी। अस्पष्ट शोधप्रारूप व अपूर्ण आवेदनपत्र अमान्य होगा। जो अभ्यर्थी एम.ए. के बाद सीधे पी-एच.डी. में प्रवेश लेंगे उन्हें एक छमाही का चार प्रश्न पत्रों का कोर्स वर्क करना अनिवार्य होगा।
3. बौद्ध अध्ययन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: यह पाठयक्रम सत्र 2008-2009 में आरंभ हुआ, जो इस केंद्र का सबसे पहला पाठ्यक्रम है। जो अभ्यर्थी बौद्ध अध्ययन में रूचि रखते हैं लेकिन दूसरे पाठ्यक्रमों के भी नियमित छात्र हैं अथवा जो लोग सरकारी या गैरसरकारी संस्थानों में कार्यरत हैं, उनको विशेष रूप से ध्यान में रखकर यह अंशकालिक एक वर्षीय पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 06 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ दो सेमिस्टर में पूरा होता है।
4. पालि भाषा एवं साहित्य में स्नातकोत्तर डिप्लोमा : जो लोग पालि भाषा एवं साहित्य के प्रति जिज्ञासु हैं और वे उसको जानना एवं सीखना चाहते हैं लेकिन दूसरे पाठ्यक्रमों में भी अध्ययनरत हैं अथवा जो लोग सरकारी या गैरसरकारी संस्थानों में कार्यरत हैं, उनको विशेषरूप से ध्यान में रखकर यह एक वर्षीय अंशकालिक पाठ्यक्रम सत्र 2010-2011 से चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 06 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ दो सेमिस्टर में पूरा होता है।
5. तिब्बती भाषा एवं तिब्बती बौद्ध धर्म में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: प्राचीन बौद्धकाल से ही भारत के तिब्बत के साथ बहुत ही प्रगाढ़ सांस्कृतिक संबंध रहें हैं। आज भी बहुत सारा बौद्ध साहित्य तिब्बती भाषा से हिंदी में अनूदित होना बाकी है, यदि यह संभव हो जाये तो प्राचीन भारत की बहुत सारी ऐतिहासिक व सामाजिक शोध सामग्रियों का विपुल भंडार हमारे समक्ष होगा, जो कई नवीन शोध जानकारियों का स्त्रोत उपलब्ध करायेगा। इस दृष्टिकोण से यह पाठ्यक्रम बेहद उपयोगी भूमिका निभाएगा। इसलिए जो लोग इसमें रूचि रखते हैं, लेकिन दूसरे पाठ्यक्रमों के भी नियामित छात्र हैं तथा जो लोग सरकारी या गैरसरकारी संस्थानों में कार्यरत हैं, उनको भी विशेषरूप से ध्यान में रखकर यह एक वर्षीय अंशकालिक पाठ्यक्रम सत्र 2011-2012 से चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 06 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ दो सेमिस्टर में पूरा होता है।
6. बौद्ध पर्यटन एवं गाइडिंग में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: आज पूरी दुनिया में पर्यटन एक उभरता हुआ व्यवसाय है, कई देशों की अर्थव्यवस्था एवं आय का साधन पर्यटन उद्योग ही है। प्राचीनकाल से ही संसार के अनेक देशों के लिए भारत का बौद्ध धम्म और उससे जुड़े ऐतिहासिक स्थल सदैव आकर्षण व भ्रमण का केंद्र रहें हैं। भारत में बौद्ध पर्यटन की व्यापक संभावनाओं को ध्यान में रखकर, यह रोजगारपरक पाठयक्रम सत्र 2011-2012 से आरंभ किया गया है। क्योंकि आज हम देखते हैं कि पुरातत्व महत्व के बौद्ध स्थलों पर प्रशिक्षित मार्गदर्शक, टूर आपरेटर व गाईड का अभाव है। इस दृष्टि से यह पाठयक्रम व्यापक रूप से रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करायेगा। जो लोग बौद्ध पर्यटन एवं गाइडिंग में रूचि रखते हैं अथवा जो सरकारी या गैरसरकारी संस्थानों में कार्यरत हैं, उनको विशेषरूप से ध्यान में रखकर यह एक वर्षीय अंशकालिक पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 06 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ दो सेमिस्टर में पूरा होता है।
7. पालि भाषा में डिप्लोमा : यह पाठयक्रम सत्र: 2014-2015 में आरंभ हुआ। जो छात्र पालि भाषा के प्रति जिज्ञासु हैं और जानना एवं सीखना चाहते हैं लेकिन एम. ए. के पाठ्यक्रमों में भी अध्ययनरत हैं, उनको विशेष रूप से ध्यान में रखकर यह दो सेमेस्टर का पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है। जो सी.बी.सी.एस. के आधार पर 04 प्रश्न पत्रों और एक परियोजना शोध कार्य व मौखिकी के साथ दो सेमिस्टर में पूरा होता है।
केन्द्र की भावी योजनाऐं इस प्रकार हैं:
1. पालि भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की पालि कांग्रेस और बौद्ध अध्ययन सोसायटी के अधिवेशन को आयोजित करने की योजना है।
2. छात्रों को कक्षा में पढ़ाते समय प्रोजेक्टर व अन्य आधुनिक सामग्री से व्याख्यान आयोजित किये जाने के लिए स्मार्ट व्याख्यान कक्ष बनाने की योजना है।
3. केन्द्र द्वारा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की बौद्ध अध्ययन की हिंदी में शोध पत्रिका का प्रकाशन किये जाने की योजना है।
4. भारतीय उपमहाद्वीप में मिले बौद्ध स्थलों, सम्राट अशोक के स्तम्भों, शिलालेखों आदि का प्रारूप तैयार किया जायेगा।
5. बौद्ध अध्ययन के महत्वपूर्ण ग्रथों का पालि भाषा, तिब्बती भाषा, मंदारिन भाषा, सिंहली भाषा से और बर्मी भाषा से हिन्दी में अनुवाद करने की एक वृहद योजना है।
6. बौद्ध अध्ययन के व पालि भाषा के विद्वानों के जीवनवृत्त पर वृत्तचित्र बनाने, उनका साक्षात्कार लेने और उनके लेखन की पाण्डुलिपियों का संग्रहकर केंद्र के संग्रहालय में संगृहीत करने की वृहद योजना है।
7. बौद्ध पुरातत्व स्थलों पर छात्रों व शोधार्थियों और समाज के अन्य लोगों के लिए उपयोगी जानकारी संग्रहकर, उन पर वृत्तचित्र बनाने व उनके फोटोग्राफ्स को संगृहीत करने की योजना है।
8. डॉ. अम्बेडकर के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरान्त दलितों की स्थिति का विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन।
बौद्ध अध्ययन केन्द्र संग्रहालय की वीथिका बनाने की योजना है:
1. पुरातत्व महत्व के ऐतिहासिक स्थलों और बौद्ध मूर्तिकला जैसे: गान्धार कला शैली, मथुरा कला शैली, अमरावती कला शैली के चित्र, प्रतीक व उनकी गैलरी व मूर्तियाँ प्रदर्शित करना.
2. गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्र, प्रतीक व उनकी गैलरी.
3. सम्पूर्ण पालि साहित्य, महायान साहित्य, उनकी पांडुलिपियाँ. बौद्ध विद्वानों की कृतियां, उनके चित्र, उनका जीवनवृत, किये गए कार्यों का उल्लेख करती एक गैलरी. बुद्धकालीन संस्कृति का प्रदर्शन. जैसे: मनोरंजन के साधन, रहन-सहन, खान-पान, उत्सव, आभूषण, हथियार व पशु-पक्षी.
4. बौद्ध राजाओं के जीवनवृत, सम्राट अशोक के अभिलेख, शिलालेख और स्तम्भ लेख का प्रतीक और चित्र.
5. बौद्ध धर्म व दर्शन और उसकी समस्त शाखाओं के विस्तार का इतिहास एवं प्रमुख विचार. बुद्ध के प्रमुख उपदेशों को उकेरना और उनके प्रमुख शिष्यों के जीवनवृत्त का निर्माण. जैसे: आम्रपाली, अंगुलिमाल, जीवक, आनंद व सारिपुत्र आदि।
विश्वविद्यालय और केंद्र का प्रशासन:
डॉ. भदंत आनंद के सहयोगी रहे डॉ.एम.एल.कासारे ने जून 2007 से केन्द्र का प्रभार संभाला और उन्होंने चार डिप्लोमा व एम.ए. के पाठ्यक्रम को आरंभ कराया। डॉ. कासारे अप्रैल 2012 तक केन्द्र के कार्यकारी निदेशक रहे। उनके बाद डॉ. सुरजीत कुमार सिंह प्रभारी निदेशक बनाये गये, उन्होंने एम.फिल. व पी-एच.डी. के शोध पाठ्यक्रम आरंभ कराये। साथ ही पालि भाषा सीखने के लिए 12वीं स्तर का एक और पालि का डिप्लोमा आरम्भ कराया. डॉ. सिंह ने केन्द्र की सभी पत्रावलियों को व्यवस्थित करवाया और केंद्र के पुस्तकालय को पूर्णतया कंप्यूटरीकृत कराया। आज डॉ. भदंत सावंगी मेधाकर विभागीय पुस्तकालय में बौद्ध धम्म एवं दर्शन से संबंधित लगभग 2300 पुस्तकें उपलब्ध हैं। डॉ. सुरजीत कुमार सिंह केंद्र को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं, उनका कहना है कि यदि कोई भारत में बौद्ध अध्ययन और पालि को पढ़ना व जानना चाहे तो वह यहाँ का रुख करे और हमारी एक ब्राण्ड इमेज बन सके, क्योंकि वर्धा कौसल्यायन जी और धर्मानंद कोसंबी जी कर्मभूमि है. इसलिए हमारा उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है ताकि हम उन मनीषीयों की तरह ही शोधपरक व गुणवत्तापूर्ण पठन-पाठन में संलग्न रहें. डॉ. सुरजीत कुमार सिंह बौद्ध धर्म-दर्शन, पालि भाषा एवं सुत्त साहित्य और डॉ. आम्बेडकरी विचारधारा के जानकार हैं और वे पालि भाषा एवं साहित्य अनुसंधान परिषद की अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका संगायन का संपादन भी करते हैं, जिसने कुछ समय में ही बौद्ध जगत में अपनी गंभीरतापूर्ण शोध सामग्री देने के कारण ख्याति अर्जित की है। आज यह केंद्र विश्वविद्यालय के संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. एल. कारुयकरा और प्रति कुलपति प्रो. चितरंजन मिश्र और कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के मार्गदर्शन में आगे बढ़ रहा।
केंद्र का पता और वेबसाइट:
http://www.hindivishwa.org/
http://centreforbuddhiststudies.blogspot.in/
https://www.facebook.com/buddhiststudies.wardha/
Email: surjeetdu@gmai.com , buddhism.mgahv@gmail.com
कार्यालय, प्रभारी निदेशक,
डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र,
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
वर्धा (महाराष्ट्र) पिन- 442005.
Phone: 07152-251728.