महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा

Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi VishwaVidyalaya,Wardha

(A Central University established by an Act of Parliament in 1997)

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा

Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi VishwaVidyalaya,Wardha

(A Central University established by an Act of Parliament in 1997)

महत्वपूर्ण सूचनाएं 📢
दूर शिक्षा

ऑनलाइन कक्षाएँ ​

सूचना पट्ट

नवीनतम सूचना

दूर शिक्षा

ऑनलाइन कक्षाएँ ​

सूचना पट्ट

नवीनतम सूचना

प्लेसमेंट सेल

जानकारी

संदेश

प्रो. कुमुद शर्मा

कुलपति

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय एक विशिष्ट विश्वविद्यालय है। यह विद्या उपार्जन का एकमात्र ऐसा केंद्र है, जिसका उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य के संवर्धन, विकास और वैश्विक प्रचार-प्रसार के साथ ही भारतीय ज्ञान-परंपरा की पुनर्प्रतिष्ठा तथा भाषायी विविधता का संरक्षण करना है। महात्मा गांधी और विनोबा भावे की पावन कर्मभूमि वर्धा में स्थापित यह विश्वविद्यालय अपने स्थापना काल से ही इन उद्देश्यों को फलीभूत करने हेतु सतत प्रयत्नशील है। यह विश्वविद्यालय तीन बीज शब्दों- महात्मा गांधी, अंतरराष्ट्रीय और हिंदी को आत्मसात करता है। यहाँ हिंदी की विविध विधाओं में शिक्षण और शोध के साथ-साथ तुलनात्मक साहित्य, अनुवाद एवं निर्वचन, भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा-अध्ययन, भाषा-विज्ञान और भाषा-प्रौद्योगिकी, संस्कृति, जनसंचार, मानवविज्ञान, शिक्षा, प्रबंधन, समाज कार्य, दर्शन तथा विधि-अध्ययन जैसे विविध क्षेत्रों में शोध, नवाचार और सृजनशीलता को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ज्ञान, शांति, मैत्री जैसा ध्येय वाक्य विश्वविद्यालय का मार्गदर्शक सिद्धांत है। इसी सिद्धांत के आधार पर यहाँ संचालित कार्यक्रमों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर विशेष बल दिया जा रहा है, जिसके केंद्र में भारतीय भाषाएँ, संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान और समावेशी शिक्षा की अवधारणा है। यह नीति बहुभाषिकता, मातृभाषा में शिक्षा, लचीलापन, बहु-विषयकता, अंतरानुशासनिकता, नैतिक मूल्यों और कौशल विकास जैसे महत्त्वपूर्ण आधारों पर टिकी है। विश्वविद्यालय इन सभी तत्त्वों को समाहित करते हुए शिक्षा को अधिक सुलभ, गुणवत्तापूर्ण, व्यावहारिक और रोज़गारोन्मुखी बनाने हेतु कटिबद्ध है। हिंदी भाषा में उच्च शिक्षा और शोध के अवसर देकर हम न केवल विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमताओं और आत्मविश्वास को प्रबल करते हैं, अपितु संघ की भाषायी नीति का पालन करते हुए भारतीय सांस्कृतिक विविधता को सहेजने और भाषायी एकात्मकता को सुदृढ़ करने में भी अपनी सशक्त भूमिका का निर्वहन करते हैं। इसी भावना से हम दूर शिक्षा निदेशालय के माध्यम से देश के दूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाले विद्यार्थियों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि शिक्षा का लोकतंत्रीकरण संभव हो और प्रत्येक श्रेणी के शिक्षार्थियों को हिंदी में ज्ञानार्जन का अवसर प्राप्त हो सके। हम भारतीय सामासिकता और सांस्कृतिक एकता को केंद्र में रखते हुए राष्ट्र-निर्माण में शिक्षा की भूमिका को सतत पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य केवल उपाधियाँ प्रदान करना नहीं, अपितु समाज के लिए जागरूक, उत्तरदायी और नीतिवान नागरिक तैयार करना है, जो ज्ञान, भाषा और संस्कृति के सेतु बन सकें। हिंदी भाषा, साहित्य और शोध को समृद्ध करने के लिए विश्वविद्यालय अनेक माध्यमों से यत्नशील है। ‘बहुवचन’ एवं ‘पुस्तक-वार्ता’ जैसी प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाएँ साहित्यिक विमर्श, आलोचना और संवाद की परंपरा को समृद्ध कर रही हैं। साथ ही, हमारा डिजिटल उपक्रम ‘हिंदीसमयडॉटकॉम’ हिंदी को विश्वभाषा बनाने की दिशा में एक प्रभावी प्रयास है। इस मंच के माध्यम से अभी तक के कॉपीराइट-मुक्त महत्त्वपूर्ण साहित्य के लगभग दस लाख से अधिक पृष्ठों को डिजिटल स्वरूप में विश्वभर के पाठकों के लिए सुलभ कराया गया है। यह विश्वविद्यालय विदेशों में स्थित संस्थानों के लिए हिंदी और हिंदी-माध्यम से विभिन्न अनुशासनों के अध्ययन-अनुसंधान के समन्वयक की भूमिका में है। विश्वविद्यालय की सुदृढ़ उपस्थिति केवल शैक्षणिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है, अपितु हिंदी प्रकाशन-जगत् में भी इसका विशिष्ट योगदान है। ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और विचारक’, ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘स्मृति, मति और प्रज्ञा’ (धर्मपाल से उदयन वाजपेयी की बातचीत), ‘हिंदी की जनपदीय कविता’, ‘भारतबोध : सनातन और सामयिक’, ‘हिंदी जगत् : विस्तार एवं संभावनाएँ’, ‘वर्धा हिंदी शब्दकोश’, ‘तुलनात्मक साहित्य विश्वकोश’ और ‘समाज-विज्ञान विश्वकोश’ जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ इस बात के प्रमाण हैं कि विश्वविद्यालय हिंदी और भारतीय ज्ञान-परंपरा को पुनर्स्थापित करने के लिए कटिबद्ध है। इस दिशा में हम निरंतर क्रियाशील हैं, ताकि दुर्लभ ग्रंथों के साथ-साथ भारतीय ज्ञान-परंपरा को समृद्ध करने वाली पुस्तकें व पाठ्य-सामग्री उपलब्ध करा सकें। विश्वविद्यालय में संचालित कार्यक्रमों में कौशल विकास और शोध पर विशेष बल दिया जा रहा है, ताकि भारत को निज स्वत्व जागरण के साथ एक ज्ञान-आधारित समाज और वैश्विक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सके। महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित यह विश्वविद्यालय, उन्हीं के उस दृष्टिकोण को प्रबल करता है, जिसमें स्वराज के साथ-साथ स्वभाषा, विशेषतः हिंदी की चिंता निहित थी। इस दिशा में हम वर्धा मुख्यालय (महाराष्ट्र) के साथ ही प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), कोलकाता (पश्चिम बंगाल) स्थित क्षेत्रीय केंद्र और रिद्धपुर (महाराष्ट्र) स्थित 'ऑफ कैंपस' के माध्यम से भी विस्तार दे रहे हैं। साथ ही, दक्षिण तथा पूर्वोत्तर भारत में विस्तार की शाखाओं की खोज कर रहे हैं। आइए, हम सब मिलकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में सहभागी बनें।

विश्वविद्यालय कुलगीत
अन्य जानकारी
Skip to content