परिचय
कोलकाता केंद्रः स्थापना वर्षः 2011
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता एवं इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना के लिए 2011-12 के आम बजट में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने दस-दस करोड़ रुपए आवंटित किए थे। उसी आलोक में कोलकाता केंद्र की स्थापना 02 मई 2011 को हुई किंतु विधिवत कामकाज की शुरुआत पहली जुलाई 2011 को हो पाई जब पार्कसर्कस में तीन कमरेवाला फ्लैट भाड़े पर मिल गया। आरंभिक अवधि में कोलकाता के समाज में इस केंद्र की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बांग्ला लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के साथ संवाद श्रृंखला आरंभ की गई। 16 नवंबर 2011 को कोलकाता केंद्र में पहला संवाद कार्यक्रम हुआ जिसमें साहित्य अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष तथा बांग्ला के विशिष्ट साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय के साथ हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह तथा इंडियन लिटरेचर के तत्कालीन संपादक सुबोध सरकार तथा अन्य ने संवाद किया। कोलकाता केंद्र ने बांग्ला व उड़िया के अलावा हिंदी और पूर्वोत्तर के बीच समन्वय तथा परस्पर सांस्कृतिक प्रभाव पर लगातार संवाद श्रृंखला चलाने के साथ ही उच्च अध्ययन और शोध की संभावनाएं तलाशने के लिए कई कार्यशालाएं आयोजित की। कोलकाता केंद्र ने तीन जून 2012 को सात केंद्रीय विश्वविद्यालयों की संयुक्त प्रवेश परीक्षा सफलतापूर्वक आयोजित की। कोलकाता केंद्र में आरंभिक सुविधाओं को देखते हुए 2013-14 से वेब पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा का नियमित पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया। 2014-15 से तीन और नियमित पाठ्यक्रम प्रारंभ किए गए। नए पाठ्यक्रमों को देखते हुए जहां केंद्र चल रहा था , वहीं तीन और कमरे भाड़े पर लिए गए किंतु वह जगह भी छोटी पड़ने लगी। सौभाग्य से पहली अक्टूबर 2014 से ईजेडसीसी में जगह मिल गई जहां केंद्र अभी चल रहा है।
शैक्षणिक/गैर शैक्षणिक सदस्य
ASSOCIATE PROFESSOR
डॉ. अमित राय 9422905719 raiamit14@gmail.com
ASSISTANT PROFESSOR
डॉ.चित्रा माली 07152-230313 chitramaali@gmail.com
डॉ. ज्योतिष पायेङ +91-33-46039985 jshpayeng@gmail.com
डॉ. अभिलाष कुमार गोंड Nil bhuabhilash@gmail.com , bhuabhilash25@gmail.com
ASSISTANT GR -I
आलोक कुमार सिंह
दृष्टि और ध्येय
महात्मा गांधी, जिनके नाम पर यह विश्वविद्यालय है, के हदय में बंगाल का एक विशिष्ट स्थान था। उन्होंने बंगाल की यात्रा कई बार की थी। पहली बार वे 1896 में कलकत्ता आये और तब 15 दिनों तक ग्रेट इस्टर्न होटल में ठहरे। वे दोबारा 1901 में कलकत्ता आये और तीन दिनों तक 91 अपर सर्कुलर रोड स्थित गोपाल कृष्ण गोखले के निवास पर ठहरे। 1915 में वे भूपेंद्रनाथ बसु के अतिथि के के रूप में कलकत्ता में रूके और 1917 में छह दिनों तक कासिम बाजार के महाराजा के घर ठहरे। गांधी जी 1920 में अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ कलकत्ता आये। 1921, 1924-25 तक गांधी जी 63 दिनों तक बंगाल में रहे। वे पुनः दिसंबर 1926-जनवरी 1927 में 5 दिनों तक कलकत्ता में रहे। वे 1937-38 में 43 दिनों तक वुडवर्न पार्क स्थित शरत चंद बसु के आवास पर रहे। उसके बाद 1929, 1939, 1945, 1946-47 में 58 दिनों तक कलकत्ता में रहे। गांधी जी 13 अगस्त 1947 को कलकत्ता आये और बेलियाहाटा में 7 सितंबर 1947 तक ठहरे। उस दौरान उन्होंने कलकत्ता व आसपास हो रहे सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ 72 घंटों की भूख हड़ताल की। ऐसे में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र की स्थापना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि भी है। देश के तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कोलकाता केंद्र की स्थापना के लिए 2011-12 के आम बजट में दस करोड़ रुपए आवंटित किए थे। तदनुसार मई 2011 में कोलकाता केंद्र की स्थापना हुई।
हिंदी के साथ बंगाल का संबंधबंगाल ने हमेशा से हिंदी की सेवा की है। हिंदी गद्य का निर्माण उन्नीसवीं सदी के आरंभ में सदल मिश्र तथा लल्लू लाल जी ने कलकत्ता के ही फोर्ट विलियम कालेज में किया था। हिंदी का पहला दैनिक ‘उदंत मार्तण्ड’ पहली बार 30 मई 1826 को कलकत्ता से ही प्रकाशित हुआ। आज भी कलकत्ता से बांग्ला की तुलना में मुख्य धारा के हिंदी के प्रकाशित होनेवाले समाचार पत्रों की संख्या अधिक है। हमें राजा राममोहन राय के 1829 में प्रकाशित ‘बंगदूत’ के हिंदी संस्करण को याद करना चाहिए। केशवचंद सेन के ‘सुलभ समाचार’, बंकिम चंद चटर्जी के ‘बंग दर्शन’, श्याम सुंदर सेन के ‘समाचार सुधा दर्शन‘, रामानंद चट्टोपाध्याय के ‘ विशाल भारत’ और अमृत लाल चक्रवर्ती के ‘हिंदी बंगवासी’ ने हिंदी के लिए अमूल्य योगदान किया है। जस्टिस शारदा चरण मित्र ने देवनागरी लिपि का समर्थन करने और उसे लोकप्रिय बनाने के लिए 1907 में ‘देवनागर’ का प्रकाशन किया था। स्वामी विवेकानंद की ही प्रेरणा से हिंदी पत्रिका ‘समन्वय’ प्रकाशित हुई थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी हिंदी के बड़े समर्थक थे। देश में पहली बार एम ए हिंदी की डिग्री हासिल करने वाले नलिनी मोहन सान्याल बांग्ला भाषी थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1921 में एम ए (हिंदी) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन में हिंदी भवन को स्थापित कर हिंदी के महत्व को रेखांकित किया था। पिछली सदी के तीसरे दशक में टैगोर ने पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी को बतौर हिंदी अध्यापक शांतिनिकेतन में नियुक्त किया था।
शैक्षणिक पाठ्यक्रम1. हिंदी से बंगाल के पुराने और मजबूत संबंधों को देखते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र ने 2014 के अकादमिक सत्र से एम फिल हिंदी (तुलनात्मक साहित्य) पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया है। यह पाठ्यक्रम हिंदी और बांग्ला साहित्य के बीच तुलनात्मक अध्ययन पर प्रमुखता से बल देता है। इसके अलावा यह पड़ोसी उड़िया, नेपाली पूर्वोत्तर भारत की चार राष्ट्रीय तथा 53 जनजातीय भाषाओं के साथ हिंदी के तुलनात्मक अध्ययन पर भी बल देता है। इन पाठ्यक्रमों के सुचारू संचालन के लिए कोलकाता केंद्र की योजना हिंदी तथा पूर्वोत्तर भाषा व संस्कृति विभाग की स्थापना करने की है। इस विभाग को संक्षेप में पूर्वाशा कहा जाएगा। अन्य भारतीय भाषाओं में हिंदी की व्याप्ति प्रश्नातीत है किंतु पूर्वोत्तर भारत की 53 जनजातीय भाषाओं तथा चार राष्ट्रीय भाषाओं के साथ हिंदी ने यथोचित संबंध नहीं बनाया। यहाँ तक कि बांग्ला के साथ हिंदी का अभी जो संबंध है, वह भी पश्चिम बंगाल तक सीमित है। बांग्लादेश में रचे जा रहे बांग्ला साहित्य और अपने ही देश के त्रिपुरा में रचे जा रहे बांग्ला साहित्य के बारे में हिंदी समाज कुछ नहीं जानता। अतः बांग्ला, उड़िया, नेपाली तथा पूर्वोत्तर की भाषाओं के साथ हिंदी का संबंध प्रगाढ़ करने तथा उनसे साहित्यिक संबंध जोड़ने और हिंदी के संघीय स्वरूप को मजबूती देना ही पूर्वाशा का मुख्य ध्येय होगा। इस विभाग का काम पूर्वोत्तर भारत की चार राष्ट्रीय तथा 53 जनजातीय भाषाओं के अलावा बांग्ला, उड़िया और नेपाली के साथ हिंदी के सहकार संबंध को स्थापित करना तथा तदनुसार पाठ्यक्रम तैयार कर पठन-पाठन व अनुसंधान कराना होगा। इस विभाग का काम पूर्वी भारत खासकर पूर्वोत्तर भारत की भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य को हिंदी में प्रकाशित करना भी होगा। उस प्रकाशन की शुरुआत पूर्वोत्तर के आठ प्रदेशों के आठ समकालीन साहित्य संचयन के प्रकाशन के साथ हो सकती है। पूर्वोत्तर के साहित्य के अलावा वहां की सांस्कृतिक धरोहर पर गंभीर अनुशीलन भी इस विभाग का काम होगा। इस विभाग के तहत एमए हिंदी, एमफिल हिंदी (तुलनात्मक साहित्य) तथा पीएच.डी के पाठ्यक्रम संचालित होंगे। पूर्वोत्तर के लोक साहित्य (मौखिक साहित्य) का संकलन भी इस विभाग का काम होगा। विभाग इस पर शोध कराएगा कि उत्तर के पहले प्रश्न होता है और उत्तर पूर्व भारत, शेष भारत के लिए आज भी प्रश्न क्यों बना हुआ है? पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा होकर भी कई बार भारत का हिस्सा क्यों नहीं लगता? पूर्वोत्तर के प्रदेशों और वहां के बाशिंदों की पीड़ा को जानने-समझने का प्रयास क्यों नहीं किया जाता? पूर्वोत्तर के लोगों की कद-काठी, शक्ल-सूरत, उनकी संस्कृति, उनकी सामाजिक परंपराएं, रीति-रिवाज और उनकी भाषाएं शेष भारत से भिन्न हैं। भिन्न चेहरे-मोहरे के कारण पूर्वोत्तर के लोगों से अपने ही देश में वीसा दिखाने को कहा जाता है। इन्हीं सबके कारण पूर्वोत्तर के लोग भारत की विविधता, विशालता और बहुलता से सामंजस्य नहीं बिठा पाते। सामंजस्य नहीं बिठाने से ही पूर्वोत्तर से भारत की संप्रभुता को चुनौती भी मिलती रही है। पूर्वाशा पूर्वोत्तर के आत्म गौरव को मान देने, वहां के लोगों की चिंताओं को जानने की कोशिश करेगा और पता लगाएगा कि पूर्वोत्तर में अलगाववाद और उग्रवाद को बढ़ाने में किन कारणों ने आग में घी का काम किया है? पूर्वोत्तरवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा होती और उनके आत्म गौरव व आत्म पहचान को मर्यादा मिलती तो भारत की विशालता, विविधता से वहां के लोग शायद सामंजस्य बिठा भी लेते। पूर्वोत्तर की भाषाएं विभिन्न भाषा परिवारों से संबंध रखती हैं जैसे-इंडो-आर्यन, आस्ट्रो-एशियाटिक,तिबतो-बर्मन और द्रनिड़। असम की भाषाएं-बोडो, कोरोई, देवरी, दिमासा, हमर, हंगखोल, करही, खेल्मा, कोच, मिशिंग, राभा, ताइ, तिवा तिबतो-बर्मन भाषा परिवार से आती हैं। पनार आस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार से आती है। मेघालय की खासी आस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार से आती है जबकि गारो तिबतो-बर्मन भाषा परिवार से। त्रिपुरा की काकबराक भी तिबतो-बर्मन भाषा परिवार से आती है। पूर्वाशा विभाग पूर्वोत्तर की चार राष्ट्रीय और 53 जनजातीय भाषाओं से यथोचित संवाद स्थापित करेगा। पूर्वोत्तर की संस्कृति व परंपरा में समानता के तत्वों की खोज करेगा और पता लगाएगा कि बाकी देश की संस्कृति व परंपरा से पूर्वोत्तर के लोग क्यों सामंजस्य नहीं बिठा पाते। पूर्वाशा भाषाई समानता का संधान कर उन्हें निकट लाएगा। इसमें मुख्यतः सेतु का काम हिंदी करेगी। पूर्वाशा विभाग पूर्वोत्तर की जनजातीय भाषाओं को भी मुख्यधारा की भाषाओं के रूप में मान देगा और निरंतर सांस्कृतिक व शैक्षणिक संवाद चलाएगा।
2. कोलकाता केंद्र निकट भविष्य में वैसे शैक्षणिक कार्यक्रम प्रारंभ करना चाहता है जो हिंदी को दक्षिणपूर्व एशिया से जोड़ने में मदद करे। कोलकाता केंद्र की योजना दक्षिणपूर्व एशियाई अध्ययन विभाग की स्थापना करने की है जिसे संक्षेप में दक्षिणावर्त कहा जाएगा। इस विभाग का काम भूटान, बंगलादेश, नेपाल, तिब्बत, चीन, मालदीव, म्यांमार और श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों को मजबूती प्रदान करना होगा। विभाग यह अध्ययन कराएगा कि इन देशों में साझा क्या है? तीन ऐसे धर्म हैं जो इन देशों को भारत से जोड़ते हैं। वे हैं-हिंदू, बौद्ध और इस्लाम। इनमें हिंदू और बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई। इसलिए दक्षिणावर्त विभाग इन दोनों धर्मों के अध्ययन पर बल देगा। दक्षिणावर्त विभाग में उच्च अध्ययन तथा शोध का माध्यम हिंदी होगी। इस विभाग के तहत दक्षिणपूर्व एशिया अध्ययन में एम ए, एम फिल तथा पीएच डी पाठ्यक्रम संचालित किये जायेंगे। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का कोलकाता केंद्र हिंदी के माध्यम से बांगलादेश, भूटान और म्यांमार जैसे दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के साथ संचार पुल की तरह कार्य करेगा। हमारे विश्वविद्यालय का ध्येय ही दक्षिणपूर्व एशियाई देशों तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी के सहकार संबंध को मजबूती देना है।
3. कोलकाता केंद्र बंगाल की हिंदीभाषी आबादी के सपनों को पूरा करने के लिए भी पूरी तरह प्रतिबद्ध है। बंगाल में हिंदी भाषियों की आबादी डेढ़ करोड़ है। निकट भविष्य में इस आबादी के विद्यार्थियों को हिंदी माध्यम से विभिन्न विषयों-जनसंचार, नाट्य कला एवं फिल्म अध्ययन, समाजकार्य, इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि में एम ए, एम फिल तथा पीएच डी की सुविधा उपलब्ध कराना कोलकाता केंद्र की प्राथमिकता होगी। बंगाल के किसी विश्वविद्यालय में इन विषयों में हिंदी माध्यम से एम ए, एम फिल, पीएच डी की सुविधा नहीं है।
संचयन/अनुवाद परियोजना
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों तथा पूर्वोंत्तर भारत के आठ प्रदेशों के क्लासिक तथा समकालीन समकालीन साहित्य का संचयन प्रकाशित करना पूर्वोत्तर की चार राष्ट्रीय तथा 53 जनजातीय भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद प्रकाशित करना। दक्षिणपूर्व एशियाई देशों का प्रमुख साहित्य हिंदी में अनुवाद कर प्रकाशित करना। सभी अनुवादों को तुलनात्मक साहित्य के शोधार्थियों को उपलब्ध कराना।
ध्येय
पूर्वोत्तर भारत की भाषाओं और उनके एवं हिंदी के संघीय स्वरूप को मजबूती देना। हिंदी माध्यम से अध्ययन, शोध और नवाचार के अनेक उपक्रमों तथा अनुवाद के माध्यम से कोलकाता केंद्र को पूर्वोत्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का अनुशीलन केंद्र और सार्क देशों का अध्ययन केंद्र बनाना। बंगाल के डेढ़ करोड़ हिंदी भाषियों का सपना बनना, उन्हें उच्च अध्ययन व शोध के लिए अपनी ओर आकृष्ट करना।
दृष्टि
पूर्वोत्तर भारत और सार्क देशों की जनजातीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भाषाओं के साहित्य तथा संस्कृति के साथ हिंदी का संबंध प्रगाढ़ करना तथा उनसे साहित्यिक-सांस्कृतिक संबंध जोड़ना पूर्वोत्तर भारत और सार्क देशों की भाषाओं के बीच समन्वय की संस्कृति को बढ़ावा देना। पूर्वोत्तर भारत और सार्क देशों में ज्ञान और शांति की अवधारणा को बल पहुंचाने के लिए ईमानदारी व निष्ठा के साथ प्रयास करना। सार्क देशों में हिंदी भाषा व साहित्य के संवर्धन के लिए संसाधन जुटाना। पूर्वोत्तर भारत तथा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बांग्लादेश, भूटान और म्यानमार के हिंदी प्रेमी अध्येताओं से संपर्क स्थापित करना और कोलकाता केंद्र द्वारा संचालित उच्च अध्ययन व शोध पाठ्यक्रमों से उन्हें जोड़ना।